अरावली विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ब्रेक, विशेषज्ञ समिति गठित करने के निर्देश
- Post By Admin on Dec 29 2025
नई दिल्ली : अरावली पहाड़ियों की परिभाषा को लेकर उठे विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व निर्देशों पर फिलहाल रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि इस विषय में और स्पष्टता व गहन समीक्षा की आवश्यकता है, क्योंकि विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्ट और न्यायालय की टिप्पणियों की अलग-अलग व्याख्या की जा रही है।
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले में स्वप्रेरित संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई की तारीख 21 जनवरी तय की। पीठ में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह भी शामिल हैं।
अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि जब तक एक नई उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन नहीं हो जाता, तब तक पूर्व में गठित समिति की सिफारिशें और अदालत के पुराने निर्देश प्रभावी नहीं रहेंगे। कोर्ट का मानना है कि किसी भी अंतिम निष्कर्ष से पहले वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और भू-वैज्ञानिक पहलुओं की समग्र और निष्पक्ष जांच जरूरी है।
पीठ ने संकेत दिया कि वह एक नई हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी के गठन पर विचार कर रही है, जो अब तक गठित सभी समितियों की रिपोर्टों का संयुक्त मूल्यांकन करेगी। यह समिति इस बात की भी समीक्षा करेगी कि पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के अंतराल में नियंत्रित खनन की अनुमति दी जा सकती है या नहीं, और यदि अनुमति दी जाए तो ऐसे मानक क्या हों जिससे पर्यावरणीय संतुलन प्रभावित न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि सौ मीटर ऊंचाई की सीमा को अरावली पहाड़ियों की पहचान का आधार मानना वैज्ञानिक दृष्टि से कितना उचित है। इसके लिए विस्तृत भू-वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि अरावली राज्यों को पहले ही सभी खनन गतिविधियां रोकने के निर्देश दिए जा चुके हैं और यह सुनिश्चित किया गया है कि नई खनन लीज जारी न हों।
कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. परमेश्वर से भी सहयोग मांगा है, विशेष रूप से प्रस्तावित विशेषज्ञ समिति की संरचना को लेकर।
गौरतलब है कि 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद व्यापक विरोध देखने को मिला था, जिसमें 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृतियों को ही अरावली की श्रेणी में रखने की बात कही गई थी। राजस्थान के उदयपुर, जोधपुर, सीकर और अलवर सहित कई जिलों में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे।
इसके बाद केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अरावली क्षेत्र में नई खनन लीज पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था और आईसीएफआरई को अतिरिक्त नो-माइनिंग जोन चिन्हित करने तथा सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।