आठवें वेतन आयोग के मायने और ओपीएस
- Post By Admin on Jan 22 2025

केन्द्र ने आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा कर दी। इससे केन्द्र एवं राज्य के कर्मचारियों के चेहरे पर राहत व खुशी की लहर छा गई किन्तु यहां यह प्रश्न उठता है कि आठवां वेतन आयोग पूर्व की ही भांति परंपरागत तरीके से फिटमेंट फैक्टर के फार्मूले को अपनाएगा या यूपीएस की तरह यहां भी कोई कलाकारी होगी। यहां यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि आखिर वेतन आयोग के गठन की जरूरत क्यों पड़ती है? इसका सामाजिक -आर्थिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है।
यह निर्विवाद है कि हर दस साल में सामाजिक आर्थिक स्थितियों में व्यापक परिवर्तन होता है जिसे संतुलित व समायोजित करने के साथ क्रय शक्ति प्रभावित न हो, इसलिए समय-समय पर वेतन आयोग की अनुशंसा पर कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी की जाती है। इस वेतन बढ़ोत्तरी का सीधा असर क्रयशक्ति पर पड़ता है। इससे उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है, रोजगार सृजन होता है।
मौद्रिक एवं वास्तविक वेतन - यहां यह भी द्रष्टव्य है कि जब हमारा वेतन बढ़ता है तो क्या वह वाकई बढ़ता है ? इसे मौद्रिक एवं वास्तविक वेतन के द्वारा समझा जा सकता है। मौद्रिक वेतन से तात्पर्य किसी कर्मचारी को उसके काम के लिए भुगतान की जाने वाली राशि है दूसरे शब्दों में जो मुद्रास्फीति के लिए समायोजित नहीं किया जाता हो और जिसे मौद्रिक मुआवजे के रूप में भी देखा जा सकता है उसे मौद्रिक वेतन कहते हैं। वहीं दूसरी तरफ वास्तविक वेतन के अंतर्गत उसकी क्रयशक्ति मुद्रास्फीति एवं जीवन यापन की क्षमता है। इससे यह पता चलता है कि इसकी खरीदारी क्षमता कितनी है। अतः व्यक्ति की क्रयशक्ति तय करनेवाली धन की मात्रा वास्तविक वेतन कहलाती है। वास्तविक वेतन को समझने का सीधा सा फार्मूला है कि सोने में उसे रूपांतरण कर लिया जाए ।
सन 1946 में प्रथम वेतन आयोग का गठन किया गया, तब न्यूनतम वेतन 55 रुपए था। इसी तरह 1956 में 80 रु., 1973 में 185 रु., 1986 में 750 रु., 1996 में 2750 रु., 2006 में 7000रु., एवं 2016 में 18000 रुपए न्यूनतम वेतन था। इसके समतुल्य यदि देखा जाए तो हम पाते हैं कि क्रमशः 1946 में प्रति दस ग्राम सोने की कीमत 88 रु., 1956 में 90 रु., 1973 में 278रु., 1986 में 2140 रु., 1996 में 5100 रु. एवं 2016 में 20600 रु. थी और वर्तमान में इसकी कीमत 80600 रुपए प्रति दस ग्राम है। फलत: इस देश का कर्मचारी अपने न्यूनतम वेतन से 1946 में 6.25 ग्राम, 1956 में 8.8 ग्राम, 1973 में 6.6 ग्राम, 1986 में 3.5 ग्राम, 1996 में 5 ग्राम, 2006 में 8 ग्राम एवं 2016 में 6 ग्राम सोना खरीद सकता था और वर्तमान में भी मूल वेतन से 6 ग्राम ही सोना खरीदा जा सकता हैं ।
इसके विश्लेषण के फलस्वरूप हम पाते हैं कि आज भी हमारी वास्तविक मजदूरी थोड़ा सा ऊपर नीचे के साथ वहीं है जहां 1946 में थी! हमारी वास्तविक मजदूरी नहीं बढ़ रही है, मौद्रिक मजदूरी बढ़ रही है। चूंकि हम हर काम सोने से नहीं करते, इसलिए मौद्रिक मजदूरी बढ़ने से निश्चित रूप से क्रय शक्ति बढ़ेगी। जेब में पैसे आएंगे तो उसमें से लगभग 20% टैक्स के रूप में सरकार के पास चले जाएंगे क्योंकि टैक्स स्लैब में भी व्यापक परिवर्तन होंगा ।
फिटमेंट फैक्टर - हर वेतन आयोग फिटमेंट फैक्टर के आधार पर वेतन बढ़ोत्तरी की अनुशंसा करता है। यह सरकारी कर्मचारियों एवं पेंशन भोगियों के वेतन एवं पेंशन में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला एक फार्मूला है जो उनके मूल वेतन को एक निश्चित मात्रा में बढ़ाकर एक नए वेतनमान में समायोजित करता है। इसे समझने के लिए मान लीजिए कि महंगाई 80-85 प्रतिशत बढ गई, तब नए वेतनमान में उसे जीरो कर दिया जाता है। इसके अंतर्गत सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए सभी कर्मचारियों को एक समान बढ़ोतरी की जाती है। सातवें वेतन आयोग में 2.57 फिटमेंट फैक्टर था अतः 31 दिसंबर 2015 को जितनी सैलरी थी, उसे 2.57 प्रतिशत गुणा किया गया। उसके बाद जितना बना उसे स्लैब में फिट करके बेसिक सैलरी निर्धारित की गयी।
वर्तमान समय में सेंट्रल में 50 लाख कर्मचारी, 65 लाख पेंशनर एवं राज्यों में 1.5 करोड़ कर्मचारी एवं लगभग उतने ही पेंशनर हैं। सभी को जोड़ने पर लगभग सवा चार करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा। 2 से तीन लाख करोड़ रुपए देश की अर्थव्यवस्था में आएंगे और जब इतने रुपए आएंगे तो स्वाभाविक रूप से क्रयशक्ति भी बढ़ेगी जिससे रोजगार सृजन के साथ लोगों का जीवन भी खुशहाल होगा। दूसरी तरफ इसका सकारात्मक असर प्राइवेट सेक्टर पर भी पड़ेगा। कुछ देर से ही सही किंतु उन्हें भी सैलरी बढ़ानी पड़ती है क्योंकि उससे उनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित होने का जोखिम हो होता है ।
वेतन आयोग की शैली के विश्लेषणोपरांत यहां यह भी विचारणीय है कि निर्विवाद रूप से ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर देना चाहिए। इससे क्रयशक्ति बढ़ने से अर्थव्यवस्था तो मजबूत होगी ही भ्रष्टाचार भी नियंत्रित होगा। कर्मचारी अपनी संपूर्ण जवानी देश और समाज की सेवा में समर्पित कर देता है अतः सरकार का यह दायित्व बनता है कि उसका बुढ़ापा भी सुरक्षित हो जो ओल्ड पेंशन स्कीम से ही संभव है। अन्यथा की स्थिति में ओल्ड पेंशन विहीन असुरक्षित बुढापा उसे भ्रष्टाचार की ओर प्रेरित करता है। वह अनैतिक धन संग्रह में प्रवृत्त हो सकता है जिसका दुष्परिणाम समाज एवं देश को भुगतना पड़ सकता है।
लेखक स्तंभकार, व्यंग्यकार एवं शिक्षाविद हैं