रामदाना : स्पेस तक पहुंचा सुपरफूड, स्वास्थ्य और खेती दोनों में लाभकारी

  • Post By Admin on Sep 22 2025
रामदाना : स्पेस तक पहुंचा सुपरफूड, स्वास्थ्य और खेती दोनों में लाभकारी

नई दिल्ली : रामदाना, जिसे चौलाई या राजगिरा भी कहा जाता है, कभी उपवास और पारंपरिक भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा था। 3 अक्टूबर 1985 को इसे स्पेस शटल अटलांटिस में भेजा गया और अंतरिक्ष में अंकुरित किया गया, साथ ही इसका उपयोग कुकीज बनाने में भी किया गया। लेकिन आज यह पौष्टिक अनाज धीरे-धीरे भूले जाने की कगार पर है।

रामदाना का इतिहास पेरू से जुड़ा है, जहां हजारों साल पहले यह एज़टेक और मय सभ्यताओं में मुख्य आहार था और धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष महत्व रखता था। सोलहवीं शताब्दी में स्पेनिश सेनापति हरनांडो कार्टेज ने वहां इसकी खेती समाप्त कर दी, लेकिन अन्य देशों में इसकी खेती जारी रही। आज दुनिया में 60 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।

भारत में इसकी प्रमुख प्रजातियों में लाल साग (अमेरेंथस गैंगेटिकस), हरी चौलाई (अमेरेंथस पेनिकुलेटस) और रामदाना (अमेरेंथस काडेटस) शामिल हैं। एक पौधे से लगभग एक किलो बीज मिलते हैं और यह कम वर्षा वाले इलाकों में भी उगाई जा सकती है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से रामदाना पोषण का खजाना है। इसमें 12-15 प्रतिशत प्रोटीन, 6-7 प्रतिशत वसा, एंटीऑक्सीडेंट्स और फेनोल्स मौजूद हैं। यह ग्लूटेन-फ्री है और सीलिएक रोग या अन्य ग्लूटेन-संवेदनशील लोगों के लिए उपयुक्त है। रामदाना हड्डियों को मजबूत बनाता है, हृदय रोग और डायबिटीज के जोखिम को कम करता है, ब्लड कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करता है और कैंसर से बचाव में मदद करता है। फाइबर की अधिकता पाचन को सुधारती है और वजन नियंत्रित रखने में सहायक होती है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह कैल्शियम, आयरन और विटामिन-सी से भरपूर विकल्प है।

खेती की दृष्टि से रामदाना खरीफ और रबी दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, बिहार, गुजरात, बंगाल और तमिलनाडु में इसकी खेती होती है। प्रमुख किस्मों में जीए-1, जीए-2 और अन्नपूर्णा शामिल हैं। फसल की कटाई और देखभाल सरल है, औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। लागत कम होने के बावजूद इसकी मंडी कीमत 3,500 से 7,200 रुपये प्रति क्विंटल तक है, जिससे प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये तक शुद्ध मुनाफा संभव है।

रामदाना की खेती में कीट और बीमारियों का खतरा होता है, लेकिन सही प्रबंधन से यह नियंत्रित किया जा सकता है। स्वास्थ्य और कृषि दोनों क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता इसे आज भी बेहद मूल्यवान बनाती है।