महिला आरक्षण पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना का भावुक बयान कहा, मेरे जीवनकाल में लागू हो यह ऐतिहासिक कानून

  • Post By Admin on Apr 19 2025
महिला आरक्षण पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना का भावुक बयान कहा, मेरे जीवनकाल में लागू हो यह ऐतिहासिक कानून

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना ने शुक्रवार को महिला आरक्षण कानून को लेकर एक भावुक अपील करते हुए उम्मीद जताई कि देश की संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने वाला कानून उनके जीवनकाल में ही लागू हो। उन्होंने इसे संविधान निर्माताओं के 'समानता के सपने' की दिशा में एक निर्णायक कदम बताया।

"हम पुरुषों की जगह नहीं ले रहे, बस अपना हक वापस ले रहे हैं"

नई दिल्ली में आयोजित पुस्तक "Women Laws - From the Womb to the Tomb" के विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि "नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023" के तहत प्रस्तावित आरक्षण नारी शक्ति की दशकों पुरानी संघर्ष की परिणति है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “हम पुरुष विरोधी नहीं हैं, हम महिला समर्थक हैं। महिलाएं किसी की जगह नहीं छीन रहीं, बल्कि वह अधिकार मांग रही हैं जो वर्षों से उनसे छीना गया।”

देश की पहली महिला CJI बनने जा रहीं नागरत्ना का स्पष्ट संदेश

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता क्रम में शीर्ष पर चल रहीं जस्टिस नागरत्ना सितंबर 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने जा रही हैं। उन्होंने कार्यक्रम के दौरान यह भी कहा कि सिर्फ संविधान में समानता का उल्लेख काफी नहीं है, बल्कि उसे व्यवहार में भी उतारना अनिवार्य है।

कानून आयोग से की अहम अपील

जस्टिस नागरत्ना ने हाल ही में नियुक्त कानून आयोग अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) डी.एन. महेश्वरी से अपील करते हुए आग्रह किया कि वे महिलाओं से जुड़े भेदभावपूर्ण कानूनों की समीक्षा करें और केंद्र सरकार को उन्हें सुधारने की सिफारिशें भेजें।

महिलाओं को चाहिए समान प्रतिनिधित्व और अवसर

कार्यक्रम में उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की आधी आबादी को अब केवल वादों की नहीं, बल्कि वास्तविक प्रतिनिधित्व और समान अवसर की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “समानता सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि समाज की सोच और व्यवहार में भी दिखनी चाहिए।”

देशभर में महिला सशक्तिकरण की बहस को दे सकता है नया मोड़

जस्टिस नागरत्ना की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब महिला आरक्षण कानून पारित तो हो चुका है, लेकिन उसके लागू होने की समय-सीमा को लेकर असमंजस बरकरार है। ऐसे में शीर्ष न्यायपालिका की एक सशक्त आवाज देशव्यापी विमर्श को और तेज कर सकती है।