पितृपक्ष 2025 : पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व

  • Post By Admin on Sep 07 2025
पितृपक्ष 2025 : पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व

नई दिल्ली : हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। इस अवधि को श्राद्ध और तर्पण जैसे कर्मकांडों के लिए पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इन दिनों पितर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं और वंशजों द्वारा किए गए पिंडदान व तर्पण से संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

श्रद्धालु इस अवसर पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति, मोक्ष और परिवार की समृद्धि के लिए विधिवत श्राद्ध कर्म करते हैं। इस वर्ष पितृपक्ष का आरंभ 8 सितंबर से हो रहा है। पंचांग के मुताबिक, 8 सितंबर को कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि रात्रि 9 बजकर 11 मिनट तक प्रभावी रहेगी, जिसके बाद द्वितीया तिथि आरंभ होगी। इस दिन भाद्रपद नक्षत्र से उत्तर भाद्रपद नक्षत्र का परिवर्तन भी होता है।

ग्रह स्थिति के अनुसार, सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा दोपहर 2 बजकर 29 मिनट तक कुंभ राशि से मीन राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्योदय 6 बजकर 3 मिनट पर और सूर्यास्त 6 बजकर 34 मिनट पर होगा। वहीं, राहुकाल प्रातः 7:37 से 9:11 बजे तक रहेगा, जिसे अशुभ समय माना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, प्रतिपदा तिथि पर उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु इसी तिथि को हुई हो या जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। विशेष रूप से मातृपक्ष यानी नाना-नानी के श्राद्ध का विधान इस दिन होता है।

श्राद्ध कर्म में गंगाजल का छिड़काव, दक्षिण दिशा की ओर मुख कर तर्पण, ब्राह्मण भोज और दान का विशेष महत्व बताया गया है। दूध से बनी खीर, तिल, शहद, सफेद वस्त्र और पुष्प पितरों को अर्पित किए जाने पर अत्यंत शुभ फलदायी माने जाते हैं।

पंडितों का मानना है कि इस अवधि में श्रद्धा और आस्था से किए गए श्राद्ध कर्म पितरों को प्रसन्न करते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि और संतोष का आशीर्वाद लेकर आते हैं।