स्वस्थ जीवन के लिए अपनाएं आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा, त्रिदोष संतुलन से दूर होंगी कई बीमारियां
- Post By Admin on Aug 05 2025
 
                    
                    नई दिल्ली : भागदौड़ और तनाव भरी आधुनिक जीवनशैली में बढ़ती बीमारियों के बीच आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा पद्धति एक बार फिर से लोगों की प्राथमिकता बनने लगी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक नुस्खों को अपनाकर न केवल शरीर को रोगों से बचाया जा सकता है, बल्कि वात, पित्त और कफ जैसे त्रिदोष को संतुलित कर सम्पूर्ण स्वास्थ्य भी प्राप्त किया जा सकता है।
त्रिदोष असंतुलन: बीमारियों की जड़
आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ने से विभिन्न रोग जन्म लेते हैं। गलत खानपान, असंतुलित दिनचर्या और तनाव इसके मुख्य कारण हैं। विशेषज्ञों की मानें तो 75-80% क्षारीय और 20-25% अम्लीय आहार अपनाकर त्रिदोषों को संतुलन में लाया जा सकता है।
वात दोष : गैस, जोड़ दर्द और लकवे जैसी समस्याएं
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	लक्षण: गैस, साइटिका, जोड़ों में दर्द, अंगों का सुन्न होना 
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	उपाय: फाइबर युक्त आहार, फल-सब्जियां, सुबह लहसुन की कलियां और मक्खन 
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	परहेज: बेसन, मैदा, अधिक दालें, निष्क्रिय जीवनशैली 
पित्त दोष : चर्म रोग, एलर्जी और अपच की जड़
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	लक्षण: जलन, खट्टी डकार, त्वचा संबंधी रोग, खून की कमी 
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	उपाय: गाजर, अनार, जामुन, सौंफ और दूब का रस 
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	परहेज: मिर्च-मसाला, नमक, खट्टे खाद्य पदार्थ, चीनी 
कफ दोष : बलगम, मोटापा और सांस संबंधी दिक्कतें
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	लक्षण: खांसी, दमा, फेफड़ों की कमजोरी, मोटापा 
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	उपाय: तुलसी, अदरक, अंजीर, मुनक्का, पालक और सोयाबीन 
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	परहेज: दूध-दही, तली-भुनी चीजें, चिकनाई वाले पदार्थ 
सिद्ध चिकित्सा : प्राचीनतम प्रणाली से आधुनिक समाधान
तमिलनाडु में जन्मी सिद्ध चिकित्सा भी त्रिदोषों को संतुलित करने में प्रभावशाली मानी जाती है। आयुष मंत्रालय के अनुसार, यह प्रणाली हर्बल औषधियों, डिटॉक्सिफिकेशन, संतुलित आहार और जीवनशैली में अनुशासन के ज़रिए समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है।
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	सिद्ध प्रणाली की उत्पत्ति अगस्त्यर ऋषि से मानी जाती है, और यह पद्धति हजारों वर्षों तक ताड़ पत्रों पर लिखी पांडुलिपियों के रूप में संरक्षित रही है। 
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	यह प्रणाली व्यक्ति की आयु, वातावरण, आदतों और शारीरिक संरचना को ध्यान में रखकर वैयक्तिक उपचार प्रदान करती है। 
आयुष विशेषज्ञों की सलाह
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि महंगे इलाज और दवाओं पर निर्भरता घटाने के लिए हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। आयुर्वेद और सिद्ध प्रणाली जैसे पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान न केवल शरीर का उपचार करते हैं, बल्कि जीवन जीने की एक समग्र दृष्टि भी प्रदान करते हैं।
 
                             
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