उत्तर भारत की बाढ़ प्राकृतिक नहीं, मानवजनित जलवायु पतन का परिणाम : आचार्य प्रशांत

  • Post By Admin on Sep 07 2025
उत्तर भारत की बाढ़ प्राकृतिक नहीं, मानवजनित जलवायु पतन का परिणाम : आचार्य प्रशांत

नई दिल्ली : उत्तर भारत में मूसलाधार बारिश और बाढ़ से मची तबाही को लेकर दार्शनिक और लेखक आचार्य प्रशांत ने इसे मानवजनित संकट करार दिया है। उन्होंने कहा कि बाढ़ और भूस्खलन को प्राकृतिक आपदा कहना खतरनाक है, क्योंकि इससे उन मानवीय कारणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिन्होंने इस आपदा को जन्म दिया है।

दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अपनी नई पुस्तक ‘ट्रस्ट विदाउट अपोलॉजी’ के लोकार्पण से पहले आचार्य प्रशांत ने कहा, “हिमाचल की पहाड़ियां इसलिए ढह रही हैं क्योंकि हमने वर्षों से उन्हें खोदा, विस्फोटकों से उड़ाया और सीमेंट से ढका। जब नदियों को जबरन कंक्रीट में बदला जाएगा और आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण होगा, तो मानसून उसका हिसाब जरूर चुकाएगा।”

हिमाचल प्रदेश में जून से अब तक 340 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, 1,300 से ज्यादा सड़कें बंद हैं, जबकि पंजाब, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली-एनसीआर में भी बाढ़ व जलभराव ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। आचार्य प्रशांत ने कहा कि यह विनाश केवल ग्रामीण असहायता का नहीं, बल्कि शहरी लापरवाही का भी आईना है। “दिल्ली और गुरुग्राम जैसे समृद्ध शहर गरीबी से नहीं, बल्कि लापरवाही से डूबते हैं। नालियां दबी हैं, बाढ़ क्षेत्रों पर इमारतें खड़ी कर दी गई हैं और हमारी जिम्मेदारी घर की चारदीवारी पर आकर खत्म हो जाती है।”

उन्होंने कहा कि मौजूदा आपदा का मूल कारण जलवायु परिवर्तन है। एशिया वैश्विक औसत से दोगुनी तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे तेज बारिश और बादलों के फटने की घटनाएं बढ़ी हैं। नासा के अनुसार, बीते दो दशकों में विश्वभर में बाढ़ और सूखे की घटनाएं दोगुनी हो चुकी हैं।

आचार्य प्रशांत ने इसे केवल पारिस्थितिक नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय भी बताया। “दुनिया का 10% सबसे अमीर वर्ग निजी जेट और विलासी जीवनशैली से लगातार उत्सर्जन बढ़ा रहा है, जबकि किसान और मजदूर उसी उत्सर्जन की कीमत जान व फसल गंवाकर चुका रहे हैं।”

उन्होंने आर्द्रभूमि की बहाली, कार्बन-गहन उपभोग पर कर लगाने और मशहूर हस्तियों व कंपनियों के कार्बन फुटप्रिंट का सार्वजनिक खुलासा करने की मांग की। साथ ही कहा कि असली सुधार तभी संभव होगा जब मानव उपभोग की आदतें बदलें। “त्योहार पटाखों और अंधाधुंध खरीदारी के पर्याय बने रहेंगे तो कोई नीति स्थायी परिणाम नहीं दे सकती।”

प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के ‘ऑपरेशन 2030’ अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने आगाह किया कि यदि 2030 तक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित नहीं किया गया तो पारिस्थितिक तंत्र ढह जाएंगे और सामान्य जलवायु की वापसी असंभव हो जाएगी।

उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता का हवाला देते हुए कहा, “भीतरी स्पष्टता से जन्मा कर्म मुक्ति देता है, जबकि मोह से उपजा कर्म विनाश की ओर ले जाता है। मानसून ने हमें स्पष्ट संदेश दिया है—प्रश्न यही है कि क्या हम सुनने को तैयार हैं?”