क्या कभी ख़त्म होगा उन परिवारों का इंतज़ार जिन्होंने खोया है अपना लाल इस देश के नाम

  • Post By Admin on Jun 01 2018
क्या कभी ख़त्म होगा उन परिवारों का इंतज़ार जिन्होंने खोया है अपना लाल इस देश के नाम

आय दिन हम ख़बरों में सुनते हैं कि देश की सुरक्षा करते हुए हमारे इतने जवान शहीद हो गए. ख़बर ये भी आती ही रहती है कि नक्सली हमलों में कई पुलिस और सी आर पी एफ के जवान वीरगति को प्राप्त हो गए. इन्हीं ख़बरों के बीच हम मरचेंट नेवी के जहाज़ों के गायब होने की ख़बर तो कभी उन पर सवार उन जबाज़ों के ग़ायब हो जाने की भी ख़बर  हैं. 

कभी सोचा है कि ये जो खबरें आती हैं जिन्हें हम सुन कर भूल जाते हैं, उनके परिवारों पर बाद में क्या गुज़रती होगी. हमारे लिए तो वो एक अज़नबी भर होता है मगर वही अजनबी अपने परिवार के लिए उनकी पूरी दुनिया होता है, नहीं?

आज आपको ऐसी ही कहानी से रूबरू करवाने जा रहे हैं हम.

ये कहानी शुरू होती है बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर से. जहाँ एक पति अपनी प्रग्नेंट पत्नी से ये वादा करके जाता है कि वो इस बार जल्दी लौट आएगा. अपने माँ-बाप से कह कर जाता है कि इस साल की दीवाली वो उनके साथ मनाएगा मगर वो नहीं लौट कर आ पाता. नहीं-नहीं ऐसा भी नहीं है कि उसकी मौत हो गयी है और ऐसा भी नहीं है कि वो ज़िंदा है.

अब आप सोच रहे होंगे कि तो फिर ऐसा क्या हुआ जो वो लौट कर नहीं आया?

तो सुनिए, वो बेटा, वो पति राहुल कुमार है. जो एक भारतीय मालवाहक जहाज़ एमराल्ड में सेकंड कप्तान की हैसियत से कार्यरत थे. अचानक एक दिन उनके गायब हो जाने की खबर आती है. वो मनहूस दिन 13 अक्टूबर 2017 था. जिस दिन प्रशांत महासागर में एक तूफ़ान आया और वो गायब हो गया.

उसके बाद से उसकी कोई खबर नहीं आयी. घरवालों ने अपने स्तर पर पता लगाने की हर सम्भव कोशिश कर ली मगर कहीं कुछ हाथ न लगा.

अब ज़रा बताइये एक राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ये नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती की वो पता करे कि आख़िर उसके देश का एक बेटा कहाँ खो गया? और ये अकेले राहुल की कहानी नहीं है. राहुल के साथ उस जहाज़ पर और भी लोग थे जो गायब हो गए. क्या उनके परिवार वालों की तरफ सरकार की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?

राज्य सरकार सुशाशन का दावा करती है केंद्र सरकार 'अच्छे दिन' देने का वादा करती है मगर इन दावों और वादों की हक़ीक़त देखिये. क्या ये परिवार इस देश का हिस्सा नहीं हैं? जब अपना देश ही इन जांबाज़ों की कोई खोज-खबर नहीं लेगा तो दूसरे देश मदद के लिए क्यों आगे आएंगे?

ये सोचने का मुद्दा है. क्या उन परिवारों का दुःख हमारा या आपका दुःख नहीं है? सोचिये ज़रा क्या गुज़र रही होगी उस पत्नी पर जिसे ये तक पता नहीं कि उसका पति ज़िंदा है या मुर्दा? उसके बच्चे उससे सवाल करते होंगे तो क्या जवाब दे पाती होगी?

एक विनम्र निवेदन आप सभी से है कि इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि इन परिवार वाले को न्याय मिल सकें ।